तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
कहीं धूप से ,जल न जाएँ
हमे आँचल की ,छांव हैं देती।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
बुरी नजर न, लग जाये हमे
रोज ही काला, टीका लगाती।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
दुआएँ हर दम, है देती
कई आशीषे भी ,लुटाती।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
बुरी राह न ,चल जाएँ हम
सत्य, असत्य का पाठ पढ़ाती।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
हम सफल हो ,हर एक कार्य में
मंदिर , मस्जिद, गुरूद्वारे है ,जाती ।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
हम गुस्सा हो जाएं,तो हमको है मनाती
तू गुस्सा हो जाये,तो भी खुद ही मान जाती।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
सारे घर का ,भार उठाती
तुम ही ,सबकी सुनती हो
कोई पीड़ा हो भी तो
किसी से न तुम कहती हो।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
तेरी गोद में पलने को
ईश्वर ने भी जन्म लिए
हम तो वो ,खुशनशीब है
जो तेरी गोद, में है हम पले ।
तुम मृदुभाषी ,तुम करुणामयी
तुम ही माँ,अमृत बरसाती।
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